ghajal
दर्द के दिन भी क्या बीते मजा आए न जीने में
सुख के अमृत भी जैसे जहर लगे पिने में
जिंदगी का मर्म समझता था तब मैं पल-पल
खून बहती थी मिलके जब पसीने में
वो भी क्या दौर था किस्मत को चुनौती दिया करते थे
जोश-जज्बा रग-रग बनके दौरती थी सिने में
न हाथ-पाँव दुखते थे ,न दिल -दिमाग थकता था
झूमते-गाते रहते थे साल के पूरे महीने में